जनसत्ता के आज के लेख "वन्य जीवन पर गहराता संकट" ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता आज के समय की कितनी बड़ी आवश्यकता है। यदि हम इसे अनदेखा करते हैं, तो हम विभिन्न संस्कृतियों और समाजों को कितनी गंभीरता से प्रभावित कर सकते हैं। आज, मनुष्य अपनी आवश्यकताओं के लिए पशु-पक्षियों के प्राकृतिक आवास को नष्ट करता जा रहा है। पशु-पक्षी घर की शोभा के लिए शिकार हो रहे हैं, और विदेशी पौधे, जिन्हें हम सजावट के लिए लगाते हैं, हमारे स्थानीय पक्षियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
लेखक गौरैया के आंगन से विलुप्त हो जाने को भी संदर्भित करते हैं और इसे एक त्रासदी के रूप में वर्णित करते हैं। सुधार के तौर पर, लेखक सुझाव देते हैं कि विदेशी पौधों के बजाय देसी पौधों को वरीयता देकर हम अपने पर्यावरण को अधिक समृद्ध बना सकते हैं।
अंततः, लेखक इस बात पर जोर देते हैं कि बड़े पशु-पक्षियों के संरक्षण के साथ-साथ हमें छोटे जीव-जंतुओं के संरक्षण पर भी ध्यान देना चाहिए। लेखक चेतावनी देते हैं कि जीवों के प्रति क्रूरता एक दिन हमारे अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगा देगी।
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